सृष्टिस्थितिविनाशानां शक्तिभूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये नारायणि नमो$स्तु ते।।
भारतीय संस्कृति सनातन परम्परा में प्रत्येक दिन किसी न किसी तरह का त्यौहार अवश्य होता है। वस्तुत: वासन्तिक और शारदीय नवरात्रों से तो आम जनमानस परिचित है लेकिन इसके अतिरिक्त दो नवरात्र और भी होते हैं, जिनके बारे में ज्यादातर लोगों को ज्ञान नहीं है, इन्हें गुप्त नवरात्र कहा जाता है। ये आषाढ़ और माघ महीने के शुक्ल पक्ष के प्रारम्भिक नौ दिनों में पड़ती हैं। देवी पुराण के अनुसार एक वर्ष में चार मास नवरात्र के लिए निश्चित हैं। अर्थात् प्रत्येक वर्ष चार नवरात्र होते हैं।
गुप्त नवरात्र का पर्व सामान्य जनों की तुलना में ज्ञान साधना के प्रति अत्यन्त सजग शक्ति उपासकों तक ही सीमित रहता है। महर्षि श्रृङ्गी के अनुसार “जिस प्रकार वासन्तिक नवरात्र में भगवान विष्णु की पूजा और शारदीय नवरात्र में मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा की प्रधानता रहती है, उसी प्रकार गुप्त नवरात्र में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है।”
गुप्त-नवरात्र में मन्त्र-साधना-
गुप्त-नवरात्र में मन्त्र-साधना का विशेष महत्व है। विशिष्ट रूप से कलियुग में मन्त्र-साधना परमार्थ प्रदान करने वाली होती है। ऐसी मान्यता है कि यदि कोई नास्तिक भी परिहासवश इस समय मंत्र साधना कर ले तो उसे भी फल सफलता के रूप में अवश्य ही मिलता है। यही इस गुप्त नवरात्र की महिमा है। मार्कण्डेय पुराण में इन चारों नवरात्रों में शक्ति के साथ-साथ इष्ट की आराधना का भी विशेष महत्व है।
तन्त्र-साधकों के लिए है विशेष-
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दस महाविद्याओं को सिद्ध करने के लिए महर्षि विश्वामित्र ने बहुत प्रयास किया, लेकिन उनके हाथ सिद्धि नहीं लगी। ज्योतिषीय गणनाओं में उन्हें बोध हुआ कि केवल गुप्त नवरात्रों में शक्ति के इन दसों स्वरूपों को सिद्ध किया जा सकता है। गुप्त नवरात्रों में दशमहाविद्याओं की साधना कर ऋषि विश्वामित्र अद्भुत शक्तियों के स्वामी बन गए। इन सिद्धियों के कारण उन्होंने एक नई सृष्टि की रचना किया था। एक अन्य कथा में मां शक्ति ने अपने शरीर से काली, तारा, छिन्नमस्ता, श्रीविद्या, भुवनेश्वरी, भैरवी, बंगला, धूमावती, त्रिपुरसुन्दरी और मातंगी नाम वाली दस महाविद्याओं को प्रकट कर दुर्ग का वध किया। इसी कारण मां शक्ति का नाम ‘दुर्गा’ पड़ गया। इन दस महाविद्याओं की साधना के लिए ‘गुप्त नवरात्र’ अत्यन्त उपयुक्त है।
पुराणों में 'गुप्त नवरात्र' की महिमा
अनेक शाक्त ग्रंथो में गुप्त नवरात्र के माहात्म्य का विशद वर्णन किया गया है। ‘शिवपुराण’ के अनुसार गुप्त नवरात्र में भगवान शंकर और जगज्जननी माता पार्वती की उपासना के लिए भी श्रेष्ठ है। गुप्त नवरात्र के साधनाकाल में मां का जप, तप, ध्यान करने से जीवन में आ रही सभी बाधाएं नष्ट होने लगती हैं। वर्ष में दो बार आने वाले गुप्त नवरात्रों में आषाढ़ के गुप्त नवरात्र मानव को न केवल आध्यात्मिक बल ही प्रदान करते हैं, बल्कि इन दिनों में संयम-नियम व श्रद्धा के साथ माता दुर्गा की उपासना करने वाले व्यक्ति को हर तरह की सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की भी प्राप्ति होती है।
- डॉ. जितेन्द्र तिवारी