प्रेम स्वरूपी अखिलेश्वर की अमृत रूपी रचना थी ।
मेरी प्रिया तुम्हारा उद्भव महज नहीं एक घटना थी ।।
ग्रह कुछ खास कतार खड़े थे हमको अवसर देना जी ।
नाम हमारा हो जायेगा इस कन्या से ब्रह्मा जी ।।
पहले अवसर मिला चन्द्र को शीतलता सुख वाली थी ।
मधुर स्मिता मृदुल सुष्मिता कूट कूट भर डाली थी ।।
बुध बढ़े आगे अब मुझको प्रखर बुद्धि दे देने दो ।
इसकी प्रज्ञा मन विवेक सब विस्मयकारी होने दो ।।
शुक्र कहां पीछे हटते दृढ़ता का पाठ पढ़ाने में ।
इसकी इच्छा शक्ति रहेगी मेरु समान जमाने में ।।
मंगल आकर के मुस्काये साहस शौर्य हमारा है ।
कभी न हारेगी यह कन्या यह वरदान हमारा है ।।
गुरु आये वैभव की इसको कभी कमी न आयेगी ।
जो मांगेगी वह पायेगी नई कीर्ति भी पायेगी ।।
सूर्य ओज देकर मुस्काये भाल चमकता दिया तुस्हें ।
सकारात्मक ऊर्जा देकर यशोपात्र कर दिया तुम्हें ।।
राहु केतु शनिश्चर भी आकर प्रेम तुम्हें जताये थे ।
कभी सतायेंगे न इसको भेंट अशीष की लाय़े थे ।।
तुमको अपने बीच में पाकर परिजन सब अभिभूत हुये ।
किया स्वीकार मित्रता मेरी हम अभिमानी खूब हुये ।।
सदा रहो चिन्मय चिरजीवी प्रीतिमयी यह युग कर दो ।
शुभ दिन लौटे यूँ ही शत शत जन्म दिवस यह युग युग हो ।।
जन्मदिवस पर आज तुम्हारे यही भावना रखते हैं ।
मौलिक हों सब काम तुम्हारे यही कामना करते हैं ।।
दिनांक - २०/०४/२०१८ की रचना