!! मन्त्रार्थसहितं लक्ष्मीसूक्तम् !!
(काम, क्रोध, लोभ वृत्ति से मुक्ति प्राप्त कर धन, धान्य, सुख, ऐश्वर्य की प्राप्ति हेतु उपयोगी स्तोत्र है।)
(काम, क्रोध, लोभ वृत्ति से मुक्ति प्राप्त कर धन, धान्य, सुख, ऐश्वर्य की प्राप्ति हेतु उपयोगी स्तोत्र है।)
पद्मानने पद्मिनि पद्मपत्रे पद्मप्रिये पद्मदलायताक्षि ।
विश्वप्रिये विश्वमनोऽनुकूले त्वत्पादपद्मं मयि सन्निधत्स्व ॥
हे लक्ष्मी देवी ! आप कमलमुखी, कमल पुष्प पर विराजमान, कमल-दल के समान नेत्रों वाली, कमल पुष्पों को पसंद करने वाली हैं। सृष्टि के समस्त जीव आपकी कृपा की कामना करते हैं। आप सबको मनोनुकूल फल देने वाली हैं। हे देवी, आपके चरण-कमल सदैव मेरे हृदय में स्थित हों।
पद्मानने पद्मऊरू पद्माक्षी पद्मसम्भवे ।
तन्मे भजसिं पद्माक्षि येन सौख्यं लभाम्यहम् ॥
हे लक्ष्मी देवी ! आपका श्रीमुख, ऊरु भाग, नेत्र आदि कमल के समान हैं। आपकी उत्पत्ति कमल से हुई है। हे कमलनयनी! मैं आपका स्मरण करता हूँ, आप मुझ पर कृपा करें ।
अश्वदायी गोदायी धनदायी महाधने ।
धनं मे जुषतां देवि सर्वांकामांश्च देहि मे ॥
हे देवी ! अश्व, गौ, धन आदि देने में आप समर्थ हैं। आप मुझे धन प्रदान करें। हे माता ! मेरी सभी कामनाओं को आप पूर्ण करें ।
पुत्र पौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्वादिगवेरथम् ।
प्रजानां भवसी माता आयुष्मंतं करोतु मे ॥
हे देवी ! आप सृष्टि के समस्त जीवों की माता हैं। आप मुझे पुत्र-पौत्र, धन-धान्य, हाथी-घोड़े, गौ, बैल, रथ आदि प्रदान करें। आप मुझे दीर्घ-आयुष्य बनाएं ।
धनमग्निर्धनं वायुर्धनं सूर्यो धनं वसु ।
धनमिन्द्रो बृहस्पतिर्वरुणो धनमस्तु मे ॥
हे लक्ष्मी ! आप मुझे अग्नि, धन, वायु, सूर्य, जल, बृहस्पति, वरुण आदि की कृपा द्वारा धन की प्राप्ति कराएं।
वैनतेयसोमं पिव सोमं पिवतु वृत्रहा ।
सोमं धनस्य सोमिनो मह्यं ददातु सोमिनः ॥
हे वैनतेय पुत्र गरुड़ ! वृत्रासुर के वधकर्ता, इंद्र, आदि समस्त देव जो अमृत पीने वाले हैं, मुझे अमृतयुक्त धन प्रदान करें।
न क्रोधो न च मात्सर्यं न लोभो नाशुभामतिः ।
भवन्ति कृतपुण्यानां भक्तानां सूक्तजापिनाम् ॥
इस सूक्त का पाठ करने वाले की क्रोध, मत्सर, लोभ व अन्य अशुभ कर्मों में वृत्ति नहीं रहती, वे सत्कर्म की ओर प्रेरित होते हैं।
सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुकगंधमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥
हे त्रिभुवनेश्वरी ! हे कमलनिवासिनी ! आप हाथ में कमल धारण किए रहती हैं। श्वेत, स्वच्छ वस्त्र, चंदन व माला से युक्त हे विष्णुप्रिया देवी ! आप सबके मन की जानने वाली हैं। आप मुझ दीन पर कृपा करें।
विष्णुपत्नीं क्षमां देवीं माधवीं माधवप्रियाम् ।
लक्ष्मीं प्रियसखीं देवीं नमाम्यच्युतवल्लभाम् ॥
भगवान् विष्णु की प्रिय पत्नी, माधवप्रिया, भगवान् अच्युत की प्रेयसी, क्षमा की मूर्ति, लक्ष्मी देवी मैं आपको बारंबार नमन करता हूं।
महादेव्यै च विद्महे विष्णुपत्न्यै च धीमहि ।
तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ॥
हम महादेवी लक्ष्मी का स्मरण करते हैं। विष्णुपत्नी लक्ष्मी हम पर कृपा करें, वे देवी हमें सत्कार्यों की ओर प्रवृत्त करें।
चन्द्रप्रभां लक्ष्मीमेशानीं सूर्याभांलक्ष्मीमेश्वरीम् ।
चन्द्र सूर्याग्निसंकाशां श्रिय देवीमुपास्महे ॥
जो चंद्रमा की आभा के समान शीतल और सूर्य के समान परम तेजोमय हैं उन परमेश्वरी लक्ष्मीजी की हम आराधना करते हैं...
श्रीर्वर्चस्वमायुष्यमारोग्यमाभिधाच्छ्रोभमानं महीयते ।
धान्य धनं पशु बहु पुत्रलाभम् सत्संवत्सरं दीर्घमायुः ॥
इस लक्ष्मी सूक्त का पाठ करने से व्यक्ति श्री, तेज, आयु, स्वास्थ्य से युक्त होकर शोभायमान रहता है। वह धन-धान्य व पशु धन सम्पन्न, पुत्रवान होकर दीर्घ आयु वाला होता है।
॥ इति श्रीलक्ष्मीसूक्तं सम्पूर्णम् ।।
डॉ. जितेन्द्र तिवारी