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Agartala, Tripura, India
डॉ. जितेन्द्र: तिवारी संस्कृतभाषी, संस्कृतानुरागी Mob. 9039712018/7005746524
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॥ साधना का स्वरूप ॥

 ॥ साधना का स्वरूप ॥

विनम्रता धर्म की अनिवार्यता नहीं अपितु धर्म का स्वभाव है। धर्म के साथ विनम्रता ऐसे ही सहज चली आती है, जैसे फूलों के साथ सुगंध और दीपक के साथ प्रकाश। जब धर्म किसी व्यक्ति के जीवन में आता है तो वह अपने साथ विनम्रता जैसे अनेक सद्गुणों को लेकर आता है। धन और धर्म दोनों ही व्यक्ति की चाल को बदल देते हैं। जब धन होता है तो व्यक्ति अकड़ कर चलता है और जब धर्म होता है तो वह विनम्र होकर चलने लगता है। 

जीवन में संपत्ति आती है तो मनुष्य कौरवों की तरह अभिमानी हो जाता है और जीवन में सन्मति आती है तो मनुष्य पाण्डवों की तरह विनम्र भी बन जाता है। संपत्ति आने के बाद भी जो उस संपत्ति रूपी लक्ष्मी को उन प्रभु श्रीनारायण की चरणदासी समझकर उसका सदुपयोग करते हुए अपने जीवन को विनम्र भाव से जीते हैं, यह यथार्थ है कि इस कलिकाल में उनसे श्रेष्ठ कोई साधक नहीं हो सकता। 

जय श्रीराम। हर हर महादेव।।



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