गकारः सिद्धिदः प्रोक्त: रेफः पापस्य हारकः।
उकारो विष्णु: अव्यक्त: त्रितयात्मागुरुः परः।।
अर्थात् - गुरु इस महनीय शब्द में गकार (ग वर्ण) सर्व मनसीप्सित सिद्धि को प्रदान करनेवाला, रकार (रेफ या र वर्ण) पाप का हारक (हरण करनेवाला) और दोनों (गकार-रकार) वर्णों में संयुक्त रहने वाला उकार (उ वर्ण) अव्यक्त विष्णुवाचक स्वरूप में विद्यमान रहता है। ऐसे त्रितयात्मा गुरु शब्द में त्रिदेव का दर्शन प्राप्त होता है। अत एव शास्त्र निर्देश करते हैं - नास्ति तत्त्वं गुरो: परम्। हम एतादृश गुरुतत्व को नमन करते हैं। श्रीगुरुभ्यो नमः
डॉ. जितेन्द्रतिवारी